सोमवार, 28 जून 2010

युद्ध : बच्चे और माँ ("मैं चल तो दूँ" से)














युद्ध : बच्चे और माँ ("मैं चल तो दूँ" से अपनी एक कविता*)

(डॉ.) कविता वाचक्नवी





निर्मल जल के
बर्फ हुए आतंकी मुख पर
कुंठाओं की भूरी भूसी
लिपटा कर, जो

गर्म रक्त मटिया देते हैं
वे, मेरे आने वाले कल के कलरव पर
घात लगाए बैठे हैं सब।



वर्तमान की वह पगडंडी
जो इस देहरी तक आती थी
धुर लाशों से अटी पडी़ है,
ओसारे में
मृत देहों पर घात लगाए
हिंसक कुत्तों की भी भारी
भीड़ लगी है।

मैं पृथ्वी का
आनेवाला कल सम्हालती
डटी हुई हूँ
नहीं गिरूँगी...
नहीं गिरूँगी....
पर इस अँधियारे में
ठोकर से बचने की भागदौड़ में
चौबारे पर जाकर
बच्चों को लाना है,
इन थोथे औ’ तुच्छ अहंकारी सर्पों के
फन की विषबाधा का भी
 भय
तैर रहा है....।

कोई रोटी के कुछ टुकडे़
छितरा, समझे
श्वासों को उसने
प्राणों का दान दिया है
और वहीं दूजा बैठा है
घात लगाए
महिलाओं, बच्चों की देहों को बटोरने
बेच सकेगा शायद जिन्हें
किसी सरहद पर
और खरीदेगा
बदले में
हत्याओं की खुली छूट, वह।


एक ओर विधवाएँ
कौरव दल की होंगी
एक ओर द्रौपदी
पुत्रहीना
सुलोचना
मंदोदरी रहेंगी........।



किंतु आज तो
कृष्ण नहीं हैं
नहीं वाल्मीकि तापस हैं,
मै वसुंधरा के भविष्य को
गर्भ लिए
बस, काँप रही हूँ
यहीं छिपी हूँ
विस्फोटों की भीषण थर्राहट से विचलित,
भीत, जर्जरित देह उठाए।


त्रासद, व्याकुल बालपने की
उत्कंठा औ’ नेह-लालसा
कुंठा बनकर
हिटलर या लादेन जनेगी
और रचेगी
ऐसी कोई खोह
कि जिसमें
हथियारों के युद्धक साथी को लेकर
छिप
जाने कितना रक्त पिएगी।


असुरक्षित बचपन
मत दो
मेरे बच्चों को,
उन्हें फूल भाते हैं
लेने दो
खिलने दो
रहने दो मिट्टी को उज्ज्वल
पाने दो सुगंध प्राणों को।

                         जाओ कृष्ण कहीं से लाओ
                         यहाँ उत्तरा तड़प रही है!!
                         वाल्मीकि!
                         सीता के गर्भ
                         भविष्य पल रहा!!


*अपनी पुस्तक  "मैं चल तो दूँ" (२००५)  से 




14 टिप्‍पणियां:

  1. वाह !
    बहुत गहराई तक गयी है लेखनी आपकी ...किसी का भी दिल दहलाने के लिए काफी है यह वास्तविक भय ! आशा की किरण कहीं से नहीं दिखती ! फिर भी लगता है हम बच जायेंगे कविता जी :-) हमेशा की तरह हाथ पर हाथ लेकर बैठ रहने वालों का सोच मैं भी परोस रहा हूँ ...
    सोचने को मजबूर करती आपकी यह रचना, लगता है अमर रहेगी !
    अब आपकी चोट कैसी है ?? हार्दिक शुभकामनायें !!

    जवाब देंहटाएं
  2. आभार इतनी उम्दा रचना के लिए...बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  3. सोचने को मजबूर करती है यह कविता..
    आने वाले कल को सुरक्षित करने के लिए संघर्ष करते वर्तमान का यथार्थ.............

    जवाब देंहटाएं
  4. महत्वपूर्ण कविता......पुराना मुहावरा भी अच्छा लगता है..आप जिस कुशलता से शब्दों को लय में डाल कर अवगुंठित कर लेती हैं..अद्भुत कृत्य सम्वेदना को इस तरह से सम्भाल कर चलने का...

    जवाब देंहटाएं
  5. Bahut hii ghazab Kavita , jhakjhor deti hai, kaash koi yeh pathyakram mein daal deta.

    जवाब देंहटाएं
  6. बढ़िया है!



    क्या आपने हिंदी ब्लॉग संकलन के नए अवतार हमारीवाणी पर अपना ब्लॉग पंजीकृत किया?



    हिंदी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों के लिए हमारीवाणी नाम से एकदम नया और अद्भुत ब्लॉग संकलक बनकर तैयार है।

    अधिक पढने के लिए चटका लगाएँ:

    http://hamarivani.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  7. Behad khoobsurat ........kabbhi appko samy mile toh mere blog pe aa kar mardarshn de ..emin apne app ko dhany samjhugi
    http://ritusugandh.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  8. पहली बार आपके ब्लॉग पर आई और बेहतरीन कवितायेँ पढने को मिलीं..

    जवाब देंहटाएं
  9. .. Uproqt kavita padhne par kuch aur kah sakun iss laayak main nahi hun..
    Aapko evam apki lekhni ki mera Naman!!

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रियाएँ मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं।
अग्रिम आभार जैसे शब्द कहकर भी आपकी सदाशयता का मूल्यांकन नहीं कर सकती।
आपकी इन प्रतिक्रियाओं की सार्थकता बनी रहे कृपया इसका ध्यान रखें।