मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

प्रीत के वट-वृक्ष!

प्रीत के वट-वृक्ष!

- कविता वाचक्नवी




http://www.bestpicturegallery.com/best-picture-gallery-scupture-Eden-Project-Elfleda.jpgफूल बरसे थे नहीं           
औ’ भीड़ ने मंगल न गाए
ढोलकों की थाप
मेहँदी या महावर
हार, गजरे, चूड़ियाँ
सिंदूर, कुमकुम
था कहीं कुछ भी नहीं,

                      कुछ छूटने का भय नहीं।



गगन ने मोती दिए थे
लहलहाती ओढ़नी दी थी धरा ने
और माटी ने महावर पाँव में भर-भर दिया था
सूर्य-किरणें अग्निसाक्षी हो गई थीं
नाद अनहद गूँजता
अंतःकरण में सर्वदा निःशेष।



दूब ने परिणय किया वट-वृक्ष से
बँध-बँध स्वयं ही,
आप वट ने बढ़, भुजाओं में उसे
लिपटा लिया था।


घिर हवा के ताप में, जल, दूब सूखी ;


प्रीत के वट-वृक्ष!
अब तुम क्या करोगे?



यह कविता,  अपनी पुस्तक "मैं चल तो दूँ" (२००५), सुमन प्रकाशन से 



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21 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तम शब्द बिम्ब।
    वट का बढ़ कर दूब को लिपटा लेना दूर की सूझ लगी।

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  2. WAAH .... APRATIM...ATISUNDAR....GEET ME BHAVABHIVYAKTI,BIBM VIDHAAN KAMAAL KA KIYA HAI AAPNE....

    BAHUT HI SUNDAR RACHNA....

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  3. ईमेल द्वारा भेजा गया सन्देश




    Sundar...bahut sundar Kavita ji....!!

    Surendra Nath Tiwari

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  4. ईमेल द्वारा भेजा गया सन्देश


    कविता जी
    बहुत गहरी अभिव्यक्ति !
    सादर ,
    प्रतिभा.

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  5. ईमेल द्वारा भेजा गया सन्देश


    कविता जी
    बहुत दिनों से संवाद नहीं कर पा रही हूँ, कुछ व्‍यक्तिगत व्‍यस्‍‍तताएं रही। आज आपकी कविता पढ़ी, बहुत ही अच्‍छी लगी। प्रीत के वटवृक्ष अब तुम क्‍या करोगे, अच्‍छा चिंतन है। मैं तो इतना ही कहूंगी कि प्रीत तो वटवृक्ष ही बनती है बस हम जहाँ चाहते हैं वहीं नहीं होती। अक्‍सर जंगल में उपज जाती है और शहर सूने ही रहते हैं।

    dr. smt. ajit gupta

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  6. ईमेल द्वारा भेजा गया सन्देश


    आदरणीय कविता जी,
    दूब और वट-वृक्ष के माध्यम से आपने कविता में
    गहन परिकल्पना और गूढ अर्थ निरूपित किया है
    बधाई,
    सादर,
    कमल

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  7. ईमेल द्वारा भेजा गया सन्देश



    दूब ने परिणय किया वट-वृक्ष से
    बँध-बँध स्वयं ही,
    आप वट ने बढ़, भुजाओं में उसे
    लिपटा लिया था।

    परिणय की सुंदर कल्पना। अच्छी कविता के लिए बधाई

    मौलेश्वर

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  8. Bahoot hi sundar apki etani shudh hindi me likhane ja mere pass koi shabad bhi nahi

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  9. आदरणीया,कविताजी, आपकी कविता, दो तीन बार पढी। पाठकको अपने आपको भुला देनेकी क्षमता है, इस कवितामें। अहिंदी भाषी होनेसे कुछ शुद्ध हिंदी लिखनेमे भी कुछ हिचकिचाहट ही होती है। किंतु, बहुत दिनोंसे इतनी सुंदर कविता नहीं पढी थी। रूपक (हि कहेंगे ना?) भी बहुत सही चुना है। यह प्रेरणा विशेष, और रचना कम प्रतीत होती है।अभिनंदन।

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  10. :प्रीत के वट-वृक्ष" शीर्षक यह कविता कई वर्ष पूर्व लिखी थी| लिखी क्या थी, बस अपने आप लिखी गई थी| आप सब ने इसे पढ़ा, अपनी राय भी दी, आपका बड़प्पन है और मेरे लिए बड़े गौरव की बात |
    वस्तुतः सारा श्रेय उस अन्तः प्रेरणा का है जिसके किए यह कविता लिखी गई|

    आप सभी के प्रति हृदय से कृतज्ञ हूँ| आपका सद्भाव सिर-माथे |

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  11. नेह बरसाएंगे
    वट के वृक्ष
    होने तक
    और
    वृक्ष के वट
    अक्षय वट
    होने तक।

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  12. एक सुन्दर कविता… पाठक को बांधने की शक्ति है इसमें…

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  13. kavita me sunder upmaye aur sunder bibm hai
    kamal ke bhav yad rakhne yogya kavita hai
    bahut bahut badhai
    rachana

    जवाब देंहटाएं

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