रविवार, 14 दिसंबर 2008

घर : दस भावचित्र


घर : १० भाव चित्र

घर : दस भावचित्र

( कविता वाचक्नवी )






(1)
*

ये बया के घोंसले हैं,
नीड़ हैं, घर हैं- हमारे
जगमगाते भर दिखें
सो
टोहती हैं
केंचुओं की मिट्टियाँ
हम।
**********

(2)
*

आज
मेरी बाँह में
घर गया है
किलक कर,
रह रहे
फ़ुटपाथ पर ही
एक नीली छत तले।
*********

(3)
*

चिटखती
उन
लकड़ियों की गंध की
रोटी मिले
दूर से
घर लौटने को
हुलसता है
मन बहुत।
**********

(4 )
*

सपना था
काँच का
टूट गया झन्नाकर
घर,
किरचें हैं आँखों में

नींद नहीं आती।
*************

(5 )
*

जब
विवशता
हो गए संबंध
तो फिर घर कहाँ,
साँस पर
लगने लगे प्रतिबंध
तो फिर घर कहाँ?
***************

(6 )
*

अंतर्मन की
झील किनारे
घर रोपा था,
आँखों में
अवशेष लिए
फिरतीं लहरें।
*************

(7)
*

लहर-लहर पर
डोल रहा
पर
खेल रहा है
अपना घर,
बादल!
मत गरजो बरसो
चट्टानों से
लगता है डर।
************


(8 )
*

घर
रचाया था
हथेली पर
किसी ने
उँगलियों से,
आँसुओं से धुल
मेहँदियाँ
धूप में
फीकी हुईं।
************


(9 )
*

नीड़ वह
मन-मन रमा जो
नोंच कर
छितरा दिया
तुमने स्वयं
विवश हूँ
उड़ जाऊँ बस
प्रिय!
रास्ता दूजा नहीं।
***************

(10 )
*


साँसों की
आवाजाही में
महक-सा
अपना घर
वार दिया मैंने
तुम्हारी
प्राणवाही
उड़ानों पर।


(अपनी पुस्तक "मैं चल तो दूँ ", सुमन प्रकाशन, २००५, से )






13 टिप्‍पणियां:

  1. चित्र जितना खूबसूरत है ,कुछ पंक्तिया घर रचाया था .........दूसरी सपना था कांच का .........तीसरी चिटखती उन लकडियो की गंध से...............बेहद खूबसूरत है .....मन को मोहने वाली

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  2. बहुत सी मिठाइयाँ एक साथ परोस दीं। मुश्किल हो रहा है खाना। रोज एक डिश मिलती तो दस दिन तक आनंदम ही आनंदम रहता।

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  3. घर पर केंद्रित इतनी सुंदर कविताओं के लिए
    रचनाकार को नमन!

    इन कविताओं को भारतीय मानस और
    स्त्री विमर्श की दृष्टि से
    बार बार पढ़ा और गुना जा सकता है.

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  4. कई बार इस ब्लौग पर आया,पढ़ा और कुछ कहना चाहा तो कहीं लिखने का बक्सा खोजता रहा.आज मिल गया...
    घर की ये तमाम तस्वीरें दिल को छूती हुईं.. कुछ और कहने की हैसियत नहीं
    और शादी की २५वीं सालगिरह की अग्रीम बधाई !

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  5. अजितजी,अनुराग जी,द्विवेदी जी,‘अलग-सा’ जी,ऋषभ जी और गौतम जी!
    आपकी इन आत्मीय-शु्भकामनाओं व रचना पर दी प्रतिक्रियाओं के लिए अत्यन्त कृतज्ञ हूँ.आके पधारने व पढ़ने के प्रति भी आभार व्यक्त करती हूँ। गौतम जी, वर्षगाँठ की बधाई देने के लिए आप यहाँ तक आए,सो मन अभिभूत हो उठा है.

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  6. Aderneeya Kavita ji,
    Apke sabhee bhav chitra maine padhe.Kam shabdon men itne achchhe dhng se bhavon ko abhivyakti dena ek kushal shabd shilpee hee kar sakta hai.asha hai age bhee aisee bhav poorna rachnaen apse prapt hotee rahengee.Shubhkamnaon ke sath.
    Hemant Kumar

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  7. वाह ! घर पर कितने सारे भाव ,बहुत ही बढ़िया ,बधाई ,नव वर्ष की शुभकामनाये

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. आप ने अपनी पुस्तक से चुन कर जो दस मोती पाठकों के आस्वादन के लिये प्रस्तुत किये हैं उनके लिए आभार!

    कम से कम शब्दों में अधिकतम अभिव्यक्ति स्पष्ट दिखती है!!

    सस्नेह -- शास्त्री

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  10. Kavita Ji ,Namaskar
    Ghar -- das bhav chitra' aaj hi padh sakne ka saubhgya mila .
    --Apki SANVEDNAAEIN, kum shabdon mein itni gahri hain ki padhte hi uska Pura chitra maanspatal per ankit ho uthta hai..
    Parmatma ne bahut deri se aap sarikhi pratibha se ,thoda sa parichaya karya hai.---
    Aapki yah pratibha niranter , Surya ki kirno ke saman failti rahe.
    --- Mei Shubh kaamnaein sweekar karein.-----
    ---- BRIJ BHUSHAN BHARDWAJ , MEERUT.

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  11. घर पर लिखी सभी कवितायें बहुत सुंदर लगीं l

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