गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

साहित्य अकादमी का ......

साहित्य अकादमी का ........

साहित्य अकादमी का त्रिदिवसीय साहित्य-समारोह व बहुभाषी कविसम्मेलन भव्यता से सम्पन्न


















साहित्य अकादमी के तत्वावधान में गत 25,26,व 27 नवम्बर को आन्ध्रप्रदेश के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक नगर विजयवाड़ा में त्रिदिवसीय साहित्य समारोह सम्पन्न हुआ, जिसमें स्थानीय संयोजक के रूप में सिद्धार्थ कलापीठम ने सहयोग किया।

25 को प्रात: सम्पन्न उद्घाटन सत्र में पी.एल.एन. प्रसाद ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि यह समारोह मुख्यत: भारतीय भाषाओं की कविताओं पर केन्द्रित है और इसका उद्देश्य भारतीय साहित्य की मूलभूत एकता को प्रतिपादित करना है। मुख्य अतिथि डॊ. टी कुटुम्बराव ने तेलुगु तथा भारतीय भाषाओं की साहित्यिक धरोहर को अमूल्य बताते हुए रचनाकारों का आह्वान किया कि वे विदेशों से आयातित विचारधाराओं के बजाय अपनी रचनाओं द्वारा मानवजाति की मूलभूत संवेदनशीलता को खंगालें।







इस अवसर पर अकादमी के बहुभाषी प्रकाशनों की पुस्तक-प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया गया। देश के विविध अंचलों से पधारे रचनाकारों,साहित्यप्रेमियों,बुद्धिजीवियों और छात्रों का पुस्तक-प्रदर्शनी के प्रति उत्साह देखते ही बनता था।


साहित्य समारोह का मुख्य आकर्षण बहुभाषी कविसम्मेलन रहा। आमन्त्रित विशिष्ट कवियों का स्वागत करते हुए साहित्य अकादमी (साऊथ ज़ोन) के सचिव ए.एस. इलांगोवा ने कहा कि यह समारोह साहित्य के माध्यम से विभिन्न भाषा-भाषियों के बीच समन्वय स्थापित करने और उनमें विद्यमान एकता के पहचान करने की दृष्टि से आयोजित किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की सारी भाषाएँ एक ही अक्षयवट की अनेकानेक शाखाओं के समान हैं और मिलकर भारतीयता को पुष्ट करती हैं।



कविसम्मेलन की अध्यक्षता डॊ. एन. गुरुप्रसाद राव ने की तथा संचालन डॊ.तंगिराला वेंकटसुब्बाराव ने किया। कवियों ने अपनी कविताएँ अपनी मातृभाषा के साथ-साथ हिन्दी और अंग्रेज़ी अनुवाद के साथ प्रस्तुत कीं। अलग-अलग भाषाओं की कविताओं में मुख्यरूप से पृथ्वी के अस्तित्व की चिन्ता, भारतीय मिथकों की समकालीन व्याख्या, स्त्रीजीवन की यातना, स्त्रीकी बदलती छवि, युद्ध और आतंकवाद के प्रति चिन्ता, मानवाधिकार चेतना तथा मनुष्य और मनुष्य के छीजते जा रहे सम्बन्ध और सम्वेदनाओं के प्रसंग मुखरित हुए।
असमिया भाषा के अर्चना पुजारी और उदयकुमार शर्मा ने प्रकृति और लोक पर केन्द्रित कविताएँ प्रस्तुत कीं तो तेलुगु रचनाकार रोहिणी सत्या और जे. प्रेमचा की कविताओं में उत्तरआधुनिक विमर्श के स्वर सुनाई दिए, जबकि तमिलभाषी वैगई सेल्वी ने आधुनिक स्त्री तथा कन्नड़भाषी संध्या रेड्डी और आनंद जुंजुरवाड़ ने भूमंडलीकृत समाज की चिन्ताओं को अपनी कविता का विषय बनाया। मलयालम रचनाकार रफ़ीक अहमद और ई.आर.टोनी ने अपनी कविताओं में समाज के वंचित वर्ग की पीड़ा का वर्णन किया, जबकि उर्दु कवयित्री जमीला निशात ने मुस्लिम औरत की यातना और बगावत को विषय बनाया। प्रो. जी मोहन रमणने छोटी-छोटी अंग्रेज़ी कविताओं के रूप में रिश्ते -नातों की मधुरता और मानव जीवन में स्मृति की भूमिका पर प्रभावशाली कविताएँ पढ़ीं। हिन्दी कवयित्री डॊ. कविता वाचक्नवी ने जहाँ सहज जीवन के उल्लास को अपनी गज़ल "बारिश का पहला छींटा" के माध्यम से व्यक्त किया वहीं आतंकवाद से त्रस्त मनुष्यता और विशेषत: स्त्री की पीड़ा को " युद्ध : बच्चे और माँ " कविता द्वारा अभिव्यक्ति प्रदान की।



तेलुगु के प्रसिद्ध साहित्यकार देवरकोंडा बालगंगाधर तिलक के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित एक सत्र में डॊ. वेंकट सुब्बाराव ने उनके संस्मरण सुनाए, जिनका तेलुगुभाषी श्रोतासमूह ने भरपूर आनंद लिया। तीसरे दिन लोककलाओं की प्रस्तुति के अन्तर्गत महाभारत और गोल्लकथा की रँगारंग कलात्मक प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
























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The Hindu'
और `Deccan Chronicle' ने मेरे ही चित्र छापे,जबकि समाचार तो - समाचार पत्रों में छपा| कुछ की कतरनें ले आई थी वे ऊपर संजो ली हैं| बल्कि डेक्कन क्रॊनिकल में बिना समाचार के केवल चित्र छपा था, जिसे अगले दिन सायंकालीन सत्र से पूर्व बाहर चायपान के समय एक वृद्ध - से सज्जन ने आकर बताया और घिसट कर चलते जा कर वे अँधेरा होने के बावजूद भी कहीं से पेपर ले कर आए और सभागृह मे मुझे सौंपा। मैं एकदम भावविगलित कंठ से उन्हें अच्छे -से धन्यवाद भी नहीं कह पाई (कार्यक्रम आरम्भ हो चुका था एकदम प्रथम पंक्ति मे होने के कारण बातचीत खड़े होकर मेरे लिए संभव थी) The Hindu तो होटल के मेरे कमरे मे स्वत: ही डाल दिया गया था| फिर सायं कालीन सत्र के लिए नीचे आई तो रिसेप्शन वालों ने अपने यहाँ आने वाले पत्रों मे समाचार दिखा कर वे मुझे सौंप दिए| अच्छा लगा वरना उस प्रकार के बढ़िया स्तर के होटल वाले ऐसी सद्भावना कम ही दिखाते हैं। यात्रा सुखदा संस्मरणात्मक रही. देश के अलग अलग भागों से आए लोगों से मिलने का आह्लाद भी बना रहा।









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