बुधवार, 28 अप्रैल 2021

कोरोना टीके से जुड़ी वह भूल जिस ने आप को आत्महन्ता बनाया : डॉ कविता वाचक्नवी




भारत में कोरोना बहुत विकराल अवस्था में है। वहाँ उस के विकराल होने के चार मुख्य कारण हैं। उनका उल्लेख करना इसलिए अनिवार्य लग रहा है क्योंकि उनमें से तीन अभी भी आम जन हेतु आत्मरक्षा में प्रासङ्गिक हैं।
  1. - अनुशासनहीनता, आत्म-नियन्त्रण का अभाव
  2. - कोरोना को राजनीति का हथियार समझ कर प्रयोग करने वालों द्वारा जन-मानसिकता-निर्माण की कुचाल (इस पर यहाँ सार्वजनिक रूप में लिखना नहीं चाहती। यदि किसी को वास्तव में जनहितकारी भाव में विस्तार से समझना हो तो निजी स्तर पर बतला सकती हूँ)
  3. - नीम-हकीमी वाला दम्भ
  4. - वैक्सीन व वैक्सिनेशन (टीका व टीकाकरण) को ले कर दो स्तर का भ्रम व अज्ञानता
अन्तिम बिन्दु के अतिरिक्त शेष सभी स्वतः स्पष्ट जैसे हैं। चौथे बिन्दु पर कथित पढ़े-लिखों को भी कुछ नहीं पता यह निरन्तर देखने में आ रहा है। अतः टीके से जुड़े तथ्यों को समझ लेना अनिवार्य है -
  • 4 (क) - पहले तो भारत में लोगों ने यह गलती की कि वे टीके को हौव्वा समझते रहे
  • 4 (ख) - विरोध की राजनीति व दुकान करने वालों ने खूब बरगलाया कि सरकार नपुंसक बनाना चाहती है, इसलिए टीका दे रही है। राजनैतिक आकाओं द्वारा यह भी कहा गया कि टीका हानिकारक है, हम तो नहीं लेंगे, न कोई और ले। इस कारण टीकाकरण खुल जाने के बाद भी लोगों ने उचित नहीं समझा कि जा कर टीका लगवा लें। उनके मूर्खतापूर्ण प्रचार ने कितनी हत्याएँ की हैं कि गणना नहीं।
  • 4 (ग) - उपर्युक्त सब कुछ कर चुकने के बाद अन्ततः जैसे-तैसे जब लोगों ने टीका लगवा लिया, तो उसके साथ ही एक अन्य भूल हुई। उसी के स्पष्टीकरण हेतु आज यह सब लिखना आवश्यक लगा क्योंकि आज से 18 वर्ष तक के सभी लोगों के लिए टीके का पञ्जीकरण खुल गया है। कृपया इसे ठीक से समझ लें ताकि टीके के पश्चात् स्थिति निम्नतर न हो।
बचना यह समझने से है कि यह टीका बुखार या अन्य रोगों के टीके की भाँति कार्य करता है। नहीं, कदापि नहीं। वे टीके दवा को टीके के रूप में देकर तुरन्त प्रभावी होते हैं और यह टीका वस्तुतः चेचक व तपेदिक आदि के टीके की भाँति है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली में परिवर्तन करता है और 'एण्टीबॉडी' का निर्माण करता है। उन एण्टी बॉडी के निर्माण की प्रक्रिया को सक्रिय करने के लिए टीके के द्वारा उसी रोग के विषाणु/जीवाणु आदि मनुष्य के भीतर सुरक्षित प्रक्रियानुसार प्रविष्ट करवाए जाए हैं ; यह सुनिश्चित करने वाले अवयवों के साथ, कि देह पर रोग का प्रकोप न हो व वह कोरोना के बाहरी प्रक्षेप से बचने के लिए 'एण्टी बॉडीज़' निर्माण करने लगे ताकि समय आने पर प्रतिरक्षा-प्रणाली उनका प्रयोग कर स्वयं को बचा सके। यह कुछ-कुछ विष को विष द्वारा मारने के सिद्धान्त पर कार्य करता है। जैसे तपेदिक और चेचक आदि के टीके में तपेदिक व चेचक के जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है।

अतः जब कोरोना का टीका लगता है, या लगेगा तो उस के पश्चात् हमारा प्रतिरक्षा तन्त्र टीके के माध्यम से सुरक्षित प्रक्रिया द्वारा प्रविष्ट हुए उस वायरस के विरोध में सक्रिय हो जाता है व उस से लड़ने के लिए एण्टीबॉडीज बनाने में लग जाता है ताकि अवसर आने पर वह कोरोना से युद्ध जीत सके। बाह्य स्तर पर प्रथम टीके के पश्चात् प्रारम्भ होने जा रही इस प्रक्रिया का अधिकांश को पता नहीं चलता क्योंकि मेडिकल ने इसे स्वास्थ्य-सुरक्षा मानकों के अनुरूप ही बनाया है। दूसरे टीके के पश्चात् अधिकांश को बुखार आदि आना उसी का परिणाम है। जो यह बताता है कि हमारा प्रतिरक्षा तन्त्र बहुत प्रभावित हुआ है और भीतर काम जारी है।

वस्तुतः टीका लगने के बाद हमारा प्रतिरक्षा तन्त्र (इम्यून सिस्टम) टीके के माध्यम से कोरोना का जो सुरक्षितअंश 'एण्टीबॉडीज़' निर्माण के उद्देश्य से हमारी देह में भेजा गया है, उस के प्रभाव में होता है, एक प्रकार का परिवर्तक युद्ध लड़ रहा होता है। अतः पहले टीके के बाद हमारी इम्यूनिटी (साधारण शब्दों में इसे सुरक्षा-बल कह सकते हैं) अल्प काल के लिए कम हो जाती है। दूसरा टीका लगने के बाद तो हमारी इम्यूनिटी एक प्रकार से और भी कम हो जाती है क्योंकि वह भीतरी परिवर्तनों के लिए युद्दहस्तर पर व्यस्त होती है। इसलिए वह किसी भी बाहरी दबाव या लापरवाही को नहीं झेल सकती। इम्यूनिटी को पूरा सामान्य होने व युद्ध जीत कर वापिस लौटने में (दूसरे टीके के पश्चात् ) कम-से-कम दो माह और लगते हैं। यदि आप को दो टीके नियमानुसार लग गये, आपने अनुशासन आदि का पालन किया तो कोरोना यदि कभी हुआ भी तो रोग की उग्रता व गम्भीरता कम होगी, कम-से-कम आप तब मरेंगे नहीं, ऐसा डॉक्टर बताते हैं।

इसलिए पहले टीके से लेकर दूसरे टीके के दो माह पश्चात् तक विभिन्न अनुपातों में हमारा सुरक्षा-तन्त्र एकदम कमजोर व भीतरी युद्ध में लगा हुआ होता है। ऐसे में किसी भी प्रकार की न्यून-से-न्यून लापरवाही भी बहुत भारी पड़ जाती है। जिन लोगों ने पहला व/या दूसरा टीका लग जाने के उपरान्त अनुशासन नहीं रखा व टीका लगते ही "हुर्रे,चलो अब तो पार्टी करें" वाला आचरण किया वे सब धरे-दबोचे गए और इसीलिए भारत में स्थितियाँ बिगड़ गईं। जब कि बार-बार बताया जा रहा था कि टीकाकरण के पश्चात् भी उन सब नियमों व अनुशासनों को मानना-अपनाना पड़ेगा जो गत वर्ष से कोरोना के सन्दर्भ में बार-बार समझाए जाते रहे हैं। बल्कि पहले से प्रारम्भ कर दूसरे टीके के कम-से-कम दो सप्ताह बाद तक तो आप स्वस्थ मनुष्य से बहुत कमतर स्थिति में होते हैं क्योंकि संक्रमण की आशंका इस समय सामान्य से भी अधिक होती है। तत्पश्चात् वह धीरे-धीरे सामान्य होने लगती है व दो माह उपरान्त एकदम सामान्य हो जाती है। दूसरे टीके के दो सप्ताह उपरान्त और फिर दो महीने बाद आप क्या-क्या कर सकते हैं और क्या-क्या तब भी प्रतिबन्धित रहेगा इसे ठीक से जानना अनिवार्य है। सभी मेडिकल बुलेटिन में इसे बताया जा रहा है। जिन्हें समस्या हो, उनके लिए मैं भी उन बातों को समझने में सहायता कर सकती हूँ ।

पहले से प्रारम्भ कर दूसरे टीके के कम-से-कम दो सप्ताह बाद तक तो आप स्वस्थ मनुष्य से बहुत कमतर स्थिति में होते हैं और संक्रमण की आशङ्का इस समय सामान्य से भी अधिक होती है। क्योंकि देह का इम्यून सिस्टम टीके द्वारा प्रविष्ट हुए अवयवों से होते परिवर्तनों से युद्धस्तर पर जूझ रहा होता है। दो महीने लगते हैं उसे उबरने में। अतः इस अवधि की लापरवाही कष्टकर हो सकती है।              - इसी लेख से 

आपकी देह में स्थिति आपका सुरक्षाबल पहले टीके से ले कर दूसरे टीके के दो माह पश्चात् तक एक भीतरी परिवर्तक युद्ध में स्वयं को झोंके हुए होता है। इसलिए उसे बाहरी शत्रुओं से बचा कर रखना अनिवार्य है। अन्यथा वह इस युद्ध में आपकी देह की रक्षा नहीं कर सकेगा। यह निश्चय आप को करना है कि आप अपनी देह को ध्वस्त होते देखना चाहते हैं अथवा स्वस्थ। निर्णय आपका : लाभ हानि आप की व आप के अपनों की।