गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

वैदिक नववर्ष मंगलमय व शुभकारी हो : कविता वाचक्नवी



सृष्टिसम्वत्सर (युगादि पर्व), नव विक्रमीसंवत्सर तथा आर्यसमाज स्थापना-दिवस की अनेकानेक शुभकामनाएँ !

हमारी सृष्टि की आयु एक अरब, छियानवें करोड़, आठ लाख, तिरपन हजार, एक सौ सोलह वर्ष व्यतीत हो चुकी है और आज एक अरब, छियानवे करोड़, आठ लाख, तिरपन हजार, एक सौ सत्तरहवाँ वर्ष प्रारम्भ हुआ है। दक्षिण भारत में सृष्टि सम्वत के दिन ही विक्रमी सम्वत मनाया जाता है, किन्तु भारत के कुछ भागों में विक्रमी सम्वत अलग दिन मनाया जाता है, यथा, गुजरात में दीपावली के अगले दिन नया विक्रमी सम्वत (नव वर्ष) मनाने का चलन है। 

वस्तुतः नव वर्ष विक्रमी सम्वत का सम्बद्ध राजा विक्रमादित्य की विजयों से सम्बंधित है, अतः विक्रमी सम्वत कुछ भागों में अलग-अलग दिनों को प्रारम्भ होता है; और दूसरी बात, उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत में माह का अन्त भिन्न भिंन्न होता है, उत्तरभारत में पूर्णिमा पर माह समाप्त होता है और दक्षिण भारत में अमावस्या को माह समाप्त होता है, इन सब कारणों बिहार में होली के अगले दिन नव वर्ष समझा जाता है और दक्षिण में आज के दिन। 

यह तो रही विक्रमी सम्वत की बात। परन्तु सृष्टि सम्वत सदा से, एक साथ, आज ही के दिन मनाया जाता है। 

आज ही के दिन अर्थात् चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (तदनुसार 7 अप्रैल 1875) ही के दिन महर्षि दयानन्द सरस्वती ने मुम्बई के काकड़वाड़ी में आर्यसमाज की स्थापना की थी। अतः आज आर्यसमाज का स्थापना दिवस भी है। 

तीनों अति विशिष्ट व महत्वपूर्ण शुभ पर्वों की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएँ। परस्पर सभी प्रकार के मतभेद व ईर्ष्या-द्वेष मिटाकर सब एक दुसरे के सुख और उन्नति में सहायक बनें, सन्मार्ग पर चलें तथा विश्वशान्ति हेतु मिलकर समूचे मानव समाज की उन्नति में सहयोग दें। इन्हीं समस्त शुभ कामनाओं सहित !


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